Skip to main content

Bina dekhe teri tashveer bna skta hu | love poetry |

बिना देखे तेरी तस्वीर बना सकता हूँ

बिना मिले तेरा हाल बता सकता हूँँ।

अरे मेरे प्यार मे इतनी ताकत है

कि तेरी आंख के आँसू 

अपनी आंख से निकाल सकता हूँ

~unknown

Comments

Popular posts from this blog

Kuch to majbooriyan rahi hongi yu hi koi bewafa nhi hota

कुछ तो मजबूरियां रही होंगी, यूँही कोई बेवफा नही होता!  यू तो गुफ्तगू उनसे रोज होती है, मुददत्तों सामना नही होता!!  जी बहुत चाहता है सच बोले, क्या कर हौसला नही होता!!  रात का इंतजार कौन करे? आज कल दिन में क्या नही होता ~ बशीर बद्र  आँखों में रहा दिल में उतर कर नहीं देखा कश्ती के मुसाफ़िर ने समुंदर नहीं देखा  बे-वक़्त अगर जाऊँगा सब चौंक पड़ेंगे इक उम्र हुई दिन में कभी घर नहीं देखा जिस दिन से चला हूँ मिरी मंज़िल पे नज़र है आँखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा ये फूल मुझे कोई विरासत में मिले हैं तुम ने मिरा काँटों भरा बिस्तर नहीं देखा यारों की मोहब्बत का यक़ीं कर लिया मैं ने फूलों में छुपाया हुआ ख़ंजर नहीं देखा महबूब का घर हो कि बुज़ुर्गों की ज़मीनें जो छोड़ दिया फिर उसे मुड़ कर नहीं देखा ख़त ऐसा लिखा है कि नगीने से जड़े हैं वो हाथ कि जिस ने कोई ज़ेवर नहीं देखा पत्थर मुझे कहता है मिरा चाहने वाला मैं मोम हूँ उस ने मुझे छू कर नहीं देखा ~बशीर बद्र

Baith jata hu mitti pe akshar... बैठ जाता हूँ मिट्टी पे अक्सर । sad hindi poetry

  बैठ जाता हूँ मिट्टी पे अक्सर क्योंकि मुझे अपनी औकात अच्छी लगती है मैंने समंदर से सीखा है जीने का सलीक़ा, चुपचाप से बहना और अपनी मौज में रहना। ऐसा नहीं है कि मुझमें कोई ऐब नहीं है पर सच कहता हूँ मुझमे कोई फरेब नहीं है जल जाते हैं मेरे अंदाज़ से मेरे दुश्मन क्योंकि एक मुद्दत से मैंने न मोहब्बत बदली और न दोस्त बदले। एक घड़ी ख़रीदकर हाथ में क्या बाँध ली, वक़्त पीछे ही पड़ गया मेरे। सोचा था घर बना कर बैठूँगा सुकून से पर घर की ज़रूरतों ने मुसाफ़िर बना डाला। सुकून की बात मत कर ऐ ग़ालिब, बचपन वाला ‘इतवार’ अब नहीं आता। शौक तो माँ-बाप के पैसों से पूरे होते हैं, अपने पैसों से तो बस ज़रूरतें ही पूरी हो पाती हैं। जीवन की भाग-दौड़ में; क्यूँ वक़्त के साथ रंगत खो जाती है ? हँसती-खेलती ज़िन्दगी भी आम हो जाती है। एक सवेरा था जब हँस कर उठते थे हम, और आज कई बार बिना मुस्कुराये ही शाम हो जाती है। कितने दूर निकल गए रिश्तों को निभाते निभाते खुद को खो दिया हमने अपनों को पाते पाते। ~अज्ञात

अटल जी कि प्रसिद्ध कविता ।एक नहीं दो नहीं करो बीसों समझौते, Atal ji poem on pakistan

  स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी एक नहीं दो नहीं करो बीसों समझौते,   पर स्वतन्त्र भारत का मस्तक नहीं झुकेगा। अगणित बलिदानो से अर्जित यह स्वतन्त्रता, अश्रु स्वेद शोणित से सिंचित यह स्वतन्त्रता। त्याग तेज तपबल से रक्षित यह स्वतन्त्रता, दु:खी मनुजता के हित अर्पित यह स्वतन्त्रता। इसे मिटाने की साजिश करने वालों से कह दो, चिनगारी का खेल बुरा होता है । औरों के घर आग लगाने का जो सपना, वो अपने ही घर में सदा खरा होता है। अपने ही हाथों तुम अपनी कब्र ना खोदो, अपने पैरों आप कुल्हाडी नहीं चलाओ। ओ नादान पडोसी अपनी आँखे खोलो, आजादी अनमोल ना इसका मोल लगाओ। पर तुम क्या जानो आजादी क्या होती है? तुम्हे मुफ़्त में मिली न कीमत गयी चुकाई। अंग्रेजों के बल पर दो टुकडे पाये हैं, माँ को खंडित करते तुमको लाज ना आई? अमरीकी शस्त्रों से अपनी आजादी को दुनिया में कायम रख लोगे, यह मत समझो। दस बीस अरब डालर लेकर आने वाली बरबादी से तुम बच लोगे यह मत समझो। धमकी, जिहाद के नारों से, हथियारों से कश्मीर कभी हथिया लोगे यह मत समझो। हमलो से, अत्याचारों से, संहारों से भारत का शीष झुका लोगे यह मत समझो। जब तक गंगा मे धार, सिंध...