Skip to main content

Posts

अंतिम उंचाई कुंवर नारायण | kunwar narayan poetry | tvf poetry | sab suru se suru hota..... #anteemuchai

  कितना स्पष्ट होता आगे बढ़ते जाने का मतलब अगर दसों दिशाएँ हमारे सामने होतीं, हमारे चारों ओर नहीं। कितना आसान होता चलते चले जाना यदि केवल हम चलते होते बाक़ी सब रुका होता। मैंने अक्सर इस ऊलजलूल दुनिया को दस सिरों से सोचने और बीस हाथों से पाने की कोशिश में अपने लिए बेहद मुश्किल बना लिया है। शुरू-शुरू में सब यही चाहते हैं कि सब कुछ शुरू से शुरू हो, लेकिन अंत तक पहुँचते-पहुँचते हिम्मत हार जाते हैं। हमें कोई दिलचस्पी नहीं रहती कि वह सब कैसे समाप्त होता है जो इतनी धूमधाम से शुरू हुआ था हमारे चाहने पर। दुर्गम वनों और ऊँचे पर्वतों को जीतते हुए जब तुम अंतिम ऊँचाई को भी जीत लोगे— जब तुम्हें लगेगा कि कोई अंतर नहीं बचा अब तुममें और उन पत्थरों की कठोरता में जिन्हें तुमने जीता है— जब तुम अपने मस्तक पर बर्फ़ का पहला तूफ़ान झेलोगे और काँपोगे नहीं— तब तुम पाओगे कि कोई फ़र्क़ नहीं सब कुछ जीत लेने में और अंत तक हिम्मत न हारने में। ~ कुंवर नारायण
Recent posts

Baith jata hu mitti pe akshar... बैठ जाता हूँ मिट्टी पे अक्सर । sad hindi poetry

  बैठ जाता हूँ मिट्टी पे अक्सर क्योंकि मुझे अपनी औकात अच्छी लगती है मैंने समंदर से सीखा है जीने का सलीक़ा, चुपचाप से बहना और अपनी मौज में रहना। ऐसा नहीं है कि मुझमें कोई ऐब नहीं है पर सच कहता हूँ मुझमे कोई फरेब नहीं है जल जाते हैं मेरे अंदाज़ से मेरे दुश्मन क्योंकि एक मुद्दत से मैंने न मोहब्बत बदली और न दोस्त बदले। एक घड़ी ख़रीदकर हाथ में क्या बाँध ली, वक़्त पीछे ही पड़ गया मेरे। सोचा था घर बना कर बैठूँगा सुकून से पर घर की ज़रूरतों ने मुसाफ़िर बना डाला। सुकून की बात मत कर ऐ ग़ालिब, बचपन वाला ‘इतवार’ अब नहीं आता। शौक तो माँ-बाप के पैसों से पूरे होते हैं, अपने पैसों से तो बस ज़रूरतें ही पूरी हो पाती हैं। जीवन की भाग-दौड़ में; क्यूँ वक़्त के साथ रंगत खो जाती है ? हँसती-खेलती ज़िन्दगी भी आम हो जाती है। एक सवेरा था जब हँस कर उठते थे हम, और आज कई बार बिना मुस्कुराये ही शाम हो जाती है। कितने दूर निकल गए रिश्तों को निभाते निभाते खुद को खो दिया हमने अपनों को पाते पाते। ~अज्ञात

Ashok stambh mobile wallpaper ... Upsc motivation

 

Kuch to majbooriyan rahi hongi yu hi koi bewafa nhi hota

कुछ तो मजबूरियां रही होंगी, यूँही कोई बेवफा नही होता!  यू तो गुफ्तगू उनसे रोज होती है, मुददत्तों सामना नही होता!!  जी बहुत चाहता है सच बोले, क्या कर हौसला नही होता!!  रात का इंतजार कौन करे? आज कल दिन में क्या नही होता ~ बशीर बद्र  आँखों में रहा दिल में उतर कर नहीं देखा कश्ती के मुसाफ़िर ने समुंदर नहीं देखा  बे-वक़्त अगर जाऊँगा सब चौंक पड़ेंगे इक उम्र हुई दिन में कभी घर नहीं देखा जिस दिन से चला हूँ मिरी मंज़िल पे नज़र है आँखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा ये फूल मुझे कोई विरासत में मिले हैं तुम ने मिरा काँटों भरा बिस्तर नहीं देखा यारों की मोहब्बत का यक़ीं कर लिया मैं ने फूलों में छुपाया हुआ ख़ंजर नहीं देखा महबूब का घर हो कि बुज़ुर्गों की ज़मीनें जो छोड़ दिया फिर उसे मुड़ कर नहीं देखा ख़त ऐसा लिखा है कि नगीने से जड़े हैं वो हाथ कि जिस ने कोई ज़ेवर नहीं देखा पत्थर मुझे कहता है मिरा चाहने वाला मैं मोम हूँ उस ने मुझे छू कर नहीं देखा ~बशीर बद्र

अटल जी कि प्रसिद्ध कविता ।एक नहीं दो नहीं करो बीसों समझौते, Atal ji poem on pakistan

  स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी एक नहीं दो नहीं करो बीसों समझौते,   पर स्वतन्त्र भारत का मस्तक नहीं झुकेगा। अगणित बलिदानो से अर्जित यह स्वतन्त्रता, अश्रु स्वेद शोणित से सिंचित यह स्वतन्त्रता। त्याग तेज तपबल से रक्षित यह स्वतन्त्रता, दु:खी मनुजता के हित अर्पित यह स्वतन्त्रता। इसे मिटाने की साजिश करने वालों से कह दो, चिनगारी का खेल बुरा होता है । औरों के घर आग लगाने का जो सपना, वो अपने ही घर में सदा खरा होता है। अपने ही हाथों तुम अपनी कब्र ना खोदो, अपने पैरों आप कुल्हाडी नहीं चलाओ। ओ नादान पडोसी अपनी आँखे खोलो, आजादी अनमोल ना इसका मोल लगाओ। पर तुम क्या जानो आजादी क्या होती है? तुम्हे मुफ़्त में मिली न कीमत गयी चुकाई। अंग्रेजों के बल पर दो टुकडे पाये हैं, माँ को खंडित करते तुमको लाज ना आई? अमरीकी शस्त्रों से अपनी आजादी को दुनिया में कायम रख लोगे, यह मत समझो। दस बीस अरब डालर लेकर आने वाली बरबादी से तुम बच लोगे यह मत समझो। धमकी, जिहाद के नारों से, हथियारों से कश्मीर कभी हथिया लोगे यह मत समझो। हमलो से, अत्याचारों से, संहारों से भारत का शीष झुका लोगे यह मत समझो। जब तक गंगा मे धार, सिंध...